Tuesday, October 13, 2015

आंतरिक शक्तियो के जागरण का पर्व नवरात्रि

बाह्य शक्तियो से अधिक महत्वपूर्ण भीतर की शक्तिया होती है बाह्य शक्तियो से सम्पन्न व्यक्ति कितना भी शक्तिशाली हो आंतरिक दुर्बलता व्यक्ति को विवश कर देती है किसी विपत्ति को बर्दाश्त करने के लिए भीतर की शक्तिया चाहिए नवरात्रि की साधना आंतरिक शक्तियो के जागरण का उत्सव है परन्तु क्या माता की भक्ति करने वाले आंतरिक शक्तियो का संधान करते है
ऐसा प्रतीत नहीं होता है निज कर्म से विमुख हो धार्मिक अनुष्ठान करना आंतरिक दुर्बलता को दर्शाता है ऐसे धार्मिक अनुष्ठान व्यक्ति की कर्म से पलायनवादी प्रवृत्ति को दर्शाते है धर्म वह है जो कर्म की प्रखरता में वृध्दि कर दे भक्ति हो ज्ञान दोनों योग की श्रेणी में माने गए है और योग के बारे में कहा गया है योगः कर्मशु कौशलम् इसलिए नवरात्रि साधना के अवसर पर आंतरिक शक्तियो का जागरण ही वास्तविक शक्ति उपासना है कायरता पलायन अकर्मण्यता से मुक्ति प्राप्त कर लेना ही माता का साक्षात्कार है

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